२४ घंटा लाइव संवादाता/ राजीव गुप्ता/ ७ मार्च २०२३: राजनीति का अखाड़ा माना जाता है भाटपाड़ा को । यहां अनेकों नेताओं में एक अलग ही नाम है संतोष सिंह का ।
नाम तथा स्वभाव से भी संतोष जैसे ही शक्सियत हैं भाटपाड़ा के इस हिंदूवादी नेता का ।
इनपर एक कहावत बिलकुल फिट बैठता है : “हमें तो अपनों ने लुटा – गैरों में कहां दम थी” ।।
बताते चलें की एक समय तृणमूल नेता रह चुके संतोष सिंह के ठेकेदारी तथा गोला का कारोबार था करोड़ों का ।
लेकिन अपने स्थानीय नेताओं से अनबन के कारण 2017 में तृणमूल छोड़ा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित होकर जुड़ गए भाजपा से।
इसके बाद शिकार हुए एक पर एक मामलों का । उनका मानना है को भाजपा करने के कारण ही उन्हें बेवजह राजनैतिक ईर्ष्या का शिकार बनाया जा रहा था । अनेकों मामलों में उन्हें बेवजह मुजरिम बना दिये जाता रहा ।
एक बार तो अदालत परिसर में ही भयानक हमले का शिकार हो गए थे । हालांकि भाजपा में रहने के दौरान फाल्गुनी पात्रा के जिला सभापति रहते जिला सचिव का पद पर आसीन भी हुए थे । लेकिन अर्जुन सिंह के तृणमूल से भाजपा में आने के बाद पुनः संकट के बादल मंडराने लगे इनपर ।
माना जाता है भाट पाड़ा के बेताज बादशाह हैं अर्जुन सिंह, तथा अर्जुन से अच्छे रिश्ते नहीं थे संतोष सिंह के । अगली बार बने नए कमिटी में उन्हें नहीं दी गई कोई जगह ।
कुल मिलाकर देखा जाय तो भाजपा से ५ साल तक जुड़े रहने की सजा के तौर पर अपने ठेकेदारी, गोला व construction के व्यवसाय के साथ साथ मार्केट में दी हुई करोड़ों की उधारी को तो डुबोया ही । साथ में पौरसभा में भी लटका रहा लाखों का बिल।
अगर पाने की बात करें तो केवल और केवल मुफ्त में अनेकों मामले में बनाए गए अभियुक्त ।
फिर भी सब कुछ संतोष कर गए संतोष सिंह । लॉक डाउन के दौरान कई महीनों तक अपने खर्चे से भूखे लोगों को भोजन कराया था । अपने लिए हानिकारक होने का संदेह होने के बाबजूद सांसद अर्जुन सिंह के हाथों ही बंटवाए गरीबों को भोजन । शायद इससे कुछ बात बन जाए इसी उम्मीद से ऐसा किया उन्होंने, लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ ।
2021 में भाटपाड़ा विधानसभा से टिकट के प्रबल दावेदारों में से एक थे संतोष सिंह । पर ऐसा हुआ नहीं, और यहां भी केवल संतोष ही करना पड़ा संतोष सिंह को ।
अंततः 2022 में नगरपालिका चुनाव के ठीक पहले भाजपा छोड़ कर अर्जुन सिंह के कट्टर विरोधी तथा जगद्दल विधायक सोमनाथ श्याम के नेतृत्व में घर वापसी कर गए तृणमूल में ।
लेकिन यहां भी उन्हें हासिल शून्य हो रहा । उनके प्रिय नेता सोमनाथ श्याम द्वारा अपनी माताजी को पौरप्रधान बनवाने के बाबजूद इनके लिए कोई व्यवस्था नहीं हुआ ।
सोमनाथ के करीबी रहने के बाबजूद नगरपालिका में फंसा हुआ लाखों रुपए निकलवाने में विफल रहे । जबकि अन्य कई लोगों का पैसा निकल भी गया । ऊपर से पौरसभा कुछ ही महीने बाद अर्जुन सिंह भी घर वापसी कर लेते हैं ।
यहां भी कहीं न कहीं खुद को असहाय ही पाया संतोष ने । आज 1 साल पूरे हो गए घर वापसी किए हुए, लेकिन अभी तक उम्मीद के अनुसार कुछ भी हासिल नहीं हुआ इन्हें ।
जबकि वे राज्य के सत्तारूढ़ दल तृणमूल में ही हैं, इसके बावजूद उनपर लादे जा रहे हैं केस पर केस ।
देखा जा रहा है इसबार भी उनके हाथ केवल और केवल मुफ्त में जेल का हवा तथा केस ही हासिल हुआ ।
४ साल पूर्व एक मामले में, जिसके FIR में इनका नाम ही नहीं था, उस मामले के चार्जशीट में उन्हें इनका भी नाम अटैच करने का आरोप सामने आ रहा हैं । उन्हें धारा ३०२ धारा के तहत मुजरिम बना दिया गया है । अब ये मामला सही है या गलत, इसका फैसला कानून करेगी लेकिन इस वाकए से काफी खफा हैं संतोष सिंह ।
एक ओर सवाल उठ रहा है की सोमनाथ श्याम के करीबी होने के बाबजूद किसी गलत आरोप में उन्हें आरोपी बनाया कैसे जा रहा है
अब केवल देखना है की क्या इसबार भी सब कुछ संतोष कर जाते हैं संतोष सिंह ना की लेते हैं कोई बड़ा फैसला ।