24GhontaLive / राजीव गुप्ता/ बैरकपुर/ 5 अप्रैल : जी हां। हमने पहले ही इसकी आशंका जाहिर कर दी थी कि टिकट के लालच में कुछ लोग खुद को पार्टी का सच्चा सिपाही बताते नहीं थक रहे थे। चाहे तृणमूल एवं भाजपा दोनों पार्टियों में, बैरकपुर लोकसभा के अंतर्गत टिकट के चाहत रखने वाले लोगों की काफी तादाद थी।
जैसे देखा जाए तो बीजपुर में तृणमूल खेमे में सोनाली सिंह राय, राजू साहनी, त्रिनांकुर भट्टाचार्य तो भाजपा के शैलेंद्र सिंह टिकट के लिए उपयुक्त थे ।
बैरकपुर भाजपा में रबीन्द्रनाथ भट्टाचार्य तो तृणमूल से उत्तम दास उपयुक्त लोगों की सूची में थे।
जगद्दल भाजपा में अरुण ब्रह्म, सौरव सिंह तो तृणमूल में सोमनाथ तालुकदार ऐसे लोगों की सूची में थे।
वहीं भाटपाड़ा तृणमूल में गोपाल राउत, धरमपाल गुप्ता तो भाजपा खेमे से उमा शंकर सिंह, संतोष सिंह जैसे जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता टिकट के प्रबल दावेदार थे। पर किसी भी परिस्थिति में हो, कहीं ना कहीं फेसबुक के सैकड़ों खातों के द्वारा खुद को टिकट पाने का प्रबल दावेदार घोषणा करवाने में कामयाब हुए थे प्रियांगु पांडे भी ।
लेकिन यह बात भी सच है की निर्दिष्ट टिकट एवं अतिरिक्त दावेदार होने पर सभी को मिलना संभव नहीं होता।
लेकिन हमने इन दावेदारों में से दो ऐसे लोगों को चिन्हित किया था जो की केवल और केवल टिकट के दावेदारी की लड़ाई में ही शामिल थे ना की आम लोगों के हक की।
इन्हें राजनीति मतलब सामाज सेवा नहीं, खुद की आकांक्षाओं को पुरा करना था ।
जहां टिकट ना मिलने पर भी गोपाल राउत, धरमपाल गुप्ता, सौरभ सिंह, संतोष सिंह जैसे लोग अपने पार्टी हित में जोर शोर से मैदान में उतर रहे हैं। लेकिन हमारे द्वारा चिन्हित किए गए 2 लोगों का चरित्र आखिर सामने आ ही गया।
हमारी कही बात आज लगभग सच होने के कगार पर है। आज भाटपाड़ा के एक “टिकिट जीवी” फेसबुकिया नेता
खुद को भाजपा और मोदी जी का बीर सैनिक बताने वाले ये जनाब अपना असली मकसद आज साबित करेंगे। साथ ही साथ खुद को लाचार, बेबस भी।
हालांकि टिकट पाने की लिए लोगों में भिड़ जुटने की क्षमता भी होनी चाहिए। केवल फेसबुक फेसबुक खेल कर “खेला होबे” से लड़ना मुश्किल था। अतः ऐसा प्रतीत होता है की भाटपाड़ा, जगद्दल जैसे इलाकों में तृणमूल और भाजपा ने स्थिति को भांपने व काफी समीक्षा के बाद ही उम्मीदवार उतारे हैं।
तृणमूल को मालूम था की भाटपाड़ा में उनके सभी नेता पार्टी के लिए ईमानदार हैं ।
हालांकि भाजपा को भी एहसास था इन लोगों के आचरण का, लेकिन पार्टी इन लोगों के जमीनी स्तर पर पकड़ कमजोर की भनक पाकर ही निश्चिंत हो गई। अतः उसके बाद पार्टी ने इनलोगों को भाव देना ही बंद कर दिया ।
लेकिन फिलहाल इतना दिख रहा है की प्रियांगु पांडे के भाजपा छोड़ देने से पार्टी बिलकुल भी चिंतित नहीं बल्कि खुश है। क्युकी ऐसे लोग जिनके पास कार्यकर्ता हैं ही नहीं, वे जहां भी रहेंगे अपना वर्चस्व साबित करने के लिए किसी भी हद तक नीचे उतर जायेंगे। भले उससे पार्टी का नुकसान ही क्यों ना हो ।
लेकिन क्या वास्तव में ये सब सच है, जो दिख रहा है।
हमारा कहना है ना ।
हम इन घटनाओं के पीछे का सच और भविष्य को भी हम लाएंगे आपके सामने । की अप्रैल महीने में किसने किसको मूर्ख बनाकर मनाया “April Fool”
कोई कह रहा है प्रियांगु पांडे के तृणमूल में चले जाने से भाटपारा में भूचाल आएगा तो कोई कहे धरती हील जाएगी।
लेकिन ऐसा प्रतीत होता हैं कि ऐसे लोगों के किसी भी पार्टी में चले जाने से, अज्ञातवास उस पार्टी के लोग तो खुशी मनाएंगे ही साथ ही साथ भाजपा में भी माहौल उत्साह का ही होगा ।