24 घंटा लाइव संबाददाता / राजीव गुप्ता / बैरकपुर / 9 फ़रवरी :
भाटपाड़ा राजनैतिक खेल का अजब अखाडा का रूप ले चूका है। यहाँ कब कौन किस तरफ या कब किसे क्या पद या जिम्मेदारी मिल जाए ये भापना या समझना अच्छे अच्छे विशलेषकों के लिए भी मुश्किल हो गया है।
यहाँ तृणमूल के टिकट बंटवारे के उपरांत हुए ड्रामे के बाद अब बारी भाजपा खेमे की है । यहाँ लम्बे समय से भाजपा के सक्रीय नेता तथा पूर्व जिला सचिव रहे संतोष सिंह को भाजपा के ओर से टिकट दिया ही नहीं गया । संतोष सिंह की बात करें तो वे साफ़ सुथरे छवि वाले तृणमूल से भाजपा में आने वाले पहले नेता थे।
जानकारी के अनुसार आज से करीब 5 वर्ष पहले 2017 में उस वक़्त के तृणमूल विधायक व पौरप्रधान अर्जुन सिंह से अनबन होने के कारण तृणमूल छोड़ भाजपा ज्वाइन किये थे।
लेकिन समय का खेल देखिये की २ साल बाद वही अर्जुन सिंह भी भाजपा ज्वाइन करते हैं और यहाँ के सांसद बनते हैं। इस दौरान संतोष सिंह भले अर्जुन सिंह के खास संपर्क में नहीं रहे हों लेकिन कोरोना या अन्य आपदा की घड़ी में अर्जुन सिंह के हाथो ही लगातार खाद्य सामग्री वगैरह बंटवाने का कार्यक्रम संपन्न करने में लगे थे।
इस सब के बावजूद उमा शंकर सिंह के जिला सभापति बनने पर संतोष सिंह के कमेटी से ही हटा दिया गया। इसपर भी काफी रोष प्रकट कर दिया था लेकिन पार्टी में मोदी जी के सच्चे सैनिक के रूप में बने रहे ।
परन्तु इस बार मामला कुछ ज्यादा ही तूल पकड़ने लगा जब उन्हें पौरसभा में उमीदवार से दूर रक्खा गया। इसके बाबजूद संतोष सिंह ने पीछे दिन एक बयां दिया था और अपना फेसबुक उपडेट भी दिया था की वो मोदी जी के सैनिक बने रहेंगे। आजीवन भाजपा के सच्चे सैनिक की तरह ही रहेंगे। लेकिन राजनीती में जुवानी जंग होते ही रहती है, और कहते हैं न की मोहब्बत और जंग में सब कुछ जायज है। अतः जंग में कुछ शब्द वापस भी लेने पड़े तो कोई गम नहीं।
अभी हाल ही में तृणमूल के एक कद्दावर नेता संजय सिंह को भाजपा में ज्वाइन करा लिया गया है. फिर ऐसे में तृणमूल खली हाथ रह जाये ये कैसे हो सकता है।
जहाँ गोपाल राउत जैसे डाइनामिक पौर प्रशासक रहे हों वहां तो खली हाथ रहने का सोंचना भी उचित नहीं। अतः कयास लगाए जा रहे हैं की भाटपाड़ा का अ-संतोष शायद तृणमूल का संतोष का कारन बनने जा रहे हैं।